Sunday, September 4, 2011

anmol kathan

दो ही सब का हित करने वाला है -भगवन और उनके भक्त. इन्हें किसी से कुछ लेना देना नहीं है, किसी से कुछ चाहना नहीं है. श्रीराम चरित्र मानस भगवन का चरित्र है और भक्ति की  वाणी है; अतः इसके पाठ का मोका भाग्य  से मिलता है. यह भगवत कृपा से मिलता है, अपने बल से नहीं.
सत्संग कर्मो का फल नहीं है, प्रत्युत केवल भगवान् की कृपा है. इस कृपा का आदर करो.
भक्ति बहुत कोमल है. किसी का निरादर करने से भक्ति का रस नहीं मिलता.

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