संसाररूपी इस जीवन-समर में, जों स्वयं को आनंदमय बनाय रखता है, दुसरों को भी हँसाते रहता है, वह इश्वर का प्रकाश ही फैलता है। यहाँ जो कुछ भी है, आनंदित होने तथा दूसरों को प्रसन्नता देने के लिए ही उपजाया गया है। जो कुछ भी बुरा व् अशुभ है, वह मनुष्य को प्रखर बनाने के लिए मौजूद है। जो प्रतिकूलताओं से डरकर रो परता है, कदम पीछे हटाने लगता है, उसकी आध्यामिकता पर कौन विश्वास करेगा।
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